जीवन की सांस के अंतिम क्षण तक गुरु को दिल मे बसा के देखो अगर बस गए तो अनाहद भी शुरू होंजायेगा जब निकले गई आत्मा तो सहस्त्र चक्र अपने आप जीते जी कपाल से आत्मा का प्रस्थान हो जाएगा मिलेगी वो ब्रह्मण्ड में गुरु के पास तो आत्मा का साक्षातकार उस परमात्मा से होंजायेगा इसके लिए सिर्फ एक काम करना हो अपने आप को गुरु के हवाले कर मुर्दा बन के जीना होगा