अद्वैत और द्वैत

अद्वैत (Non-Dualism):

मुख्य विचार: अद्वैत वेदान्त का तात्पर्य है “अद्वैत” अर्थात् एकत्व। इसमें आत्मा (जीव) और परमात्मा (ब्रह्म) के बीच कोई वास्तविक भेद नहीं माना जाता।

ज्ञान का मार्ग: मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग ज्ञान (Jnana) और आत्मबोध से है, जिसमें व्यक्ति स्वयं को ब्रह्म से एक रूप में पहचानता है।

प्रमुख प्रवर्तक: आदिकर्ता आदि शंकराचार्य जिन्होंने इस सिद्धांत को व्यापक रूप से प्रचारित किया।

द्वैत (Dualism):

मुख्य विचार: द्वैत वेदान्त में अंतरवाद है, जहाँ परमात्मा (विशेष रूप से विष्णु या उनकी रूप में) और जीवों के बीच एक स्पष्ट और स्थायी भेद माना जाता है।

भक्ति का मार्ग: यहाँ मोक्ष प्राप्ति का मार्ग पूर्ण भक्ति (भक्ति योग) में निहित है, जहाँ व्यक्ति परमात्मा से अलग रहते हुए उनके प्रति समर्पित रहता है।

प्रमुख प्रवर्तक: महाप्रभु मध्वाचार्य ने द्वैत के सिद्धांत को विस्तार से प्रतिपादित किया।


  1. आत्मा और परमात्मा के संबंध में मतभेद

अद्वैत:

आत्मा और परमात्मा को अन्ततः एक ही माने जाते हैं।

संसार को माया (मायावी भ्रम) के रूप में देखा जाता है, जहाँ वास्तविकता केवल ब्रह्म है।

द्वैत:

आत्मा और परमात्मा के बीच एक अमिट भेद है।

संसार और जीव वास्तविक हैं और प्रत्येक का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है।


  1. मोक्ष (मुक्ति) के मार्ग

अद्वैत में:

मोक्ष का मार्ग आत्म-ज्ञान, ध्यान और शास्त्रों के अध्ययन से होता है।

व्यक्ति का लक्ष्य है अपने आप को ब्रह्म से एक समझना और माया के भ्रम से उभरना।

द्वैत में:

मोक्ष का मार्ग समर्पित भक्ति और परमात्मा के प्रति प्रेम में निहित है।

यहाँ व्यक्ति हमेशा एक पृथक अस्तित्व के रूप में परमात्मा के निकट पहुँचता है, न कि उनके विलय में।

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