जब हर आहट में अनाहद नाद (जिसे ओम का निरंतर उच्चारण भी कहते हैं) सुनाई देने लगे, तो यह गहरी ध्यान अवस्था और आत्मिक उन्नति का संकेत है। इसे आध्यात्मिकता में ‘नादानुसंधान’ या ‘शब्द ब्रह्म’ की अवस्था कहा जाता है। यह स्थिति तब आती है जब साधक का मन पूरी तरह से एकाग्र हो जाता है और वह बाहरी ध्वनियों से परे, आंतरिक अनाहद नाद को सुनने लगता है।
इस अवस्था में:
- चित्त की शुद्धि: मन शांत और निर्मल हो जाता है, इच्छाएँ और विकार क्षीण हो जाते हैं।
- अद्वैत भाव: साधक को आत्मा और ब्रह्म (सर्वोच्च चेतना) में भेद नहीं अनुभव होता, अद्वैत की अनुभूति होती है।
- समाधि अवस्था: यह अवस्था समाधि का प्रारंभिक रूप हो सकती है, जहाँ साधक अपनी देह-बुद्धि से परे जाकर ब्रह्मानुभूति करता है।
- आनंद की अनुभूति: साधक को असीम आनंद और शांति का अनुभव होता है, जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है।
यह अवस्था उच्च स्तर की साधना और आत्मज्ञान का प्रतीक है, जिसे प्राप्त करने के लिए निरंतर ध्यान, भक्ति और साधना की आवश्यकता होती है।