अनाहद नाद और अजपा जाप आध्यात्मिक योग व साधना में एक साधक या योगी के लिए जरूरी है जब प्रेम भक्ति ज्ञान और ध्यान की चरम अवस्था को पा लेता है और समाधि में एकाग्र हो जाता है और मन की शंजये मिट कर विरक्ति अवस्था मे जब साधकनपहुँच जाता है ऐसी अवस्था मे उसे समाधि में अनाहद आवाज पूरे शरीर मे गूंजती हुई सुनाई देती है और रोम रोम से ये आवाज साधक को हर वक़्त सुनने लगती है ओर ये योग की परंपराओं में महत्वपूर्ण हैं। यह ध्वनियां और क्रियाएं संतों और योगियों के लिए आत्म-साक्षात्कार करवाकर ध्यान और समाधि की और उच्च आध्यात्मिक अनुभवों का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
- अनाहद नाद की आवाज:
अनाहद नाद का मतलब होता है वह ध्वनि जो बिना किसी बाहरी साधन के उत्पन्न होती है। यह ध्वनि एक गहरी ध्यान अवस्था में सुनाई देती है और इसे ईश्वरीय ध्वनि माना जाता है। संत और योगी इसे ध्यान की गहरी अवस्था में अनुभव करते हैं। यह ध्वनि ब्रह्मांड की उत्पत्ति और चेतना से जुड़ी होती है।
अनाहद नाद को सुनने के लिए क्या करना होता है:
ध्यान और साधना में नियमित रूप से लीन होना आवश्यक होता है।अपने गुरु के बताए मार्ग पर चलना होता है ये गुरु के द्वारा शक्तिपात कर ऊर्जा हृदय में रोपित कर दी जाती है जो साधना से पूरे शरीर मे हलचल गूंज की महसूस होती है एक बार शुरू होने के बाद ये नस्ट नही हो सकती और म्रत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर के साथ ब्रह्मांड में चली जाती है और वही स्तिथ हो जाती है
इसे पाने के लिए शिष्य को गुरु के कहे अनुसार ध्यान समाधि की क्रिया में लय होना होता है और अपने शरीर पर नियंत्रण कर इंद्रियों को शांत करना, विशेष रूप से बाहरी भौतिक ध्वनियों से दूर रहना। होता है अपने को।एकाग्र करना जरूरी होता है
आंतरिक ऊर्जा (प्राण) को नियंत्रित करने के लिए गुरु के द्वारा बताए मार्ग पर अनुसरण करना होता है ओर ध्यान का अभ्यास करना।मन को एकाग्र करना होता है सांसारिक मोह से दूर हो विरक्ति को।पाना होता है जब वीतरागी बन जाता है तो उसमें आध्यात्मिक।पूर्णता आ जाती है
संत मानते हैं कि ध्यान की अंतिम अवस्था मे जब शक्तिपात पूर्ण रूप से शिष्य पर हो जाता है और शिष्य इस काबिल हो जाता है तब उसे ध्यान में करत समय यह ध्वनियां सुनाई देती हैं।
- अजपा जाप:
अजपा जाप का मतलब होता है “जो बिना बोले जपा जाए”। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सांस के साथ अपने आप ही मंत्र या नाम का जप होता है। यह दो सांसों के बीच के प्राकृतिक जप को संदर्भित करता है, जिसमें “सो” श्वास के साथ और “हम” निश्वास के साथ होता है। इसे “सोऽहम” मंत्र के रूप में जाना जाता है।
अजपा जाप का महत्व:
यह संतों के लिए महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह जप अपने आप होता है और साधक को निरंतर ईश्वर की याद में बनाए रखता है।
यह मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है, जिससे साधक ध्यान की उच्च अवस्था में प्रवेश कर पाता है।
अजपा जाप से साधक की चेतना गहरी होती जाती है और वह आत्मा और परमात्मा के एकत्व का अनुभव कर पाता है।
क्यों जरूरी है:
अनाहद नाद और अजपा जाप दोनों ही आत्मिक यात्रा के गहरे आयाम हैं। ये संतों को बाहरी जगत से हटाकर आंतरिक जागरूकता की ओर ले जाते हैं।
यह साधक को उसकी आत्मा से जोड़ते हैं, जिससे वह ईश्वर से सीधा संबंध बना पाता है।
संतों के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये साधनाएं मोक्ष प्राप्ति की दिशा में सहायक होती हैं और उन्हें संसारिक मोह-माया से ऊपर उठने में मदद करती हैं।
इसलिए, अनाहद नाद और अजपा जाप संतों और योगियों के लिए आत्मा के उच्चतर आयामों का अनुभव करने के आवश्यक साधन हैं।