अनाहद से महा समाधि तक: योग और आत्मिक चेतना की रहस्यमयी यात्रा

“अनाहद”, “महा समाधि”, “नाद ब्रह्म”, “मूर्धा नाड़ी” और “कर्म” जैसे शब्द योग, तंत्र और वेदांत के गूढ़ पहलुओं को दर्शाते हैं। आइए इसे सरलता से समझते हैं:अनाहद नाद: “अनाहद” का अर्थ है “बिना आघात के उत्पन्न होने वाली ध्वनि”। यह एक आंतरिक ध्वनि है जो योगियों को गहरी ध्यान अवस्था में सुनाई देती है। इसे “नाद ब्रह्म” भी कहा जाता है, क्योंकि यह ब्रह्मांड की मूल ध्वनि या आत्मा की आवाज मानी जाती है। यह वह अवस्था है जब मन शांत हो जाता है और आत्मा के साथ एकाकार होने लगता है।महा समाधि: यह योग में परम अवस्था है, जहाँ साधक पूर्ण रूप से अपनी चेतना को विश्व चेतना (ब्रह्म) में विलीन कर देता है। यह मृत्यु नहीं, बल्कि देह से परे जागृत अवस्था है। कुछ संतों के लिए यह शरीर छोड़ने की प्रक्रिया भी हो सकती है, जब वे अपनी इच्छा से प्राण त्यागते हैं।नाद ब्रह्म की आवाज आत्मा में उत्पन्न होना: जब साधक गहरे ध्यान में जाता है, तो कुंडलिनी जागरण या प्राण शक्ति के संतुलन से “नाद” सुनाई देता है। यह घंटियों, झंकार, या सूक्ष्म ध्वनियों के रूप में हो सकता है। यह आत्मा का वह संकेत है जो शरीर और मन को पार कर ब्रह्मांड से जोड़ता है।शरीर में नाद और कर्म: शरीर में नाद का अनुभव प्राणायाम, ध्यान और नाड़ी शोधन से संभव होता है। यह कर्म (शारीरिक और मानसिक कार्य) को शुद्ध करता है, क्योंकि नाद के साथ चेतना उच्च स्तर पर पहुँचती है। यहाँ “कर्म” का तात्पर्य पिछले संचित कर्मों के शुद्धिकरण से भी हो सकता है।मूर्धा नाड़ी और समाधि: “मूर्धा” का अर्थ सिर का ऊपरी भाग या सहस्रार चक्र से हो सकता है। यह वह स्थान है जहाँ कुंडलिनी शक्ति अंततः पहुँचती है। मूर्धा नाड़ी का उपयोग समाधि में तब होता है जब साधक अपनी चेतना को सुषुम्ना नाड़ी (मेरुदंड के मध्य मार्ग) के माध्यम से सहस्रार तक ले जाता है। यहाँ नाद का अनुभव चरम पर होता है और समाधि प्राप्त होती है।

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