अहंकार शून्यता वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति “मैं” और “मेरा” की भावना से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। यह अद्वैत वेदांत और योग में आत्म-साक्षात्कार का मुख्य लक्ष्य है। जब अहंकार समाप्त हो जाता है, तो आत्मा की शुद्ध चेतना (ब्रह्म) का साक्षात्कार होता है। इसे अहं-नाश या अहंकार विमुक्ति भी कहा जाता है।
अहंकार शून्यता की विशेषताएँ:
- कर्तापन का अंत: व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि वह कर्ता (Doer) नहीं है, बल्कि ईश्वर ही सबका कर्ता है।
- मैं और मेरा का अभाव: “मैं” और “मेरा” की भावना समाप्त हो जाती है।
- समत्व भाव: सुख-दुःख, लाभ-हानि, मान-अपमान में समान भाव रहता है।
- पूर्ण विनम्रता: घमंड, अभिमान, और आत्मश्लाघा समाप्त हो जाती है।
- निर्लिप्तता: संसार में रहकर भी उसमें लिप्त नहीं रहते, जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी गीला नहीं होता।
- साक्षी भाव: व्यक्ति मात्र साक्षी (Observer) बनकर सब देखता है, जुड़ाव या प्रतिक्रिया नहीं करता।
- पूर्ण शांति और आनंद: मन की अशांति और द्वंद्व समाप्त हो जाते हैं, और स्थायी शांति और आनंद प्राप्त होता है।