- ध्यान (मेडिटेशन):
निर्विचार ध्यान: मन को शून्य करने का अभ्यास।
साक्षी भाव का अभ्यास: विचारों और भावनाओं को बिना जुड़ाव के देखना।
- ज्ञान और विवेक साधना:
आत्मविचार (Self-Inquiry): “मैं कौन हूँ?” इस प्रश्न पर गहन चिंतन, जैसा रामण महर्षि ने सिखाया।
अहंकार का परीक्षण: हर विचार और भाव में छिपे अहंकार को पहचानना और उसे त्यागना।
वस्तु-विवेक: नित्य (शाश्वत) और अनित्य (अस्थायी) में भेदभाव करना।
- भक्ति और समर्पण:
निःस्वार्थ भक्ति: ईश्वर के प्रति पूर्ण प्रेम और समर्पण, जिसमें “मैं” का अंत हो जाता है।
समर्पण (शरणागति): अपने अहंकार को ईश्वर के चरणों में अर्पित करना।
नाम-स्मरण: निरंतर ईश्वर के नाम का जप, जिससे अहंकार समाप्त होता है।
- वैराग्य और अनासक्ति:
असक्ति (अनासक्ति): किसी भी वस्तु, व्यक्ति, या परिस्थिति में आसक्ति न रखना।
त्याग और समर्पण: कर्मों का फल ईश्वर को अर्पण करना और अपने कर्तापन को त्यागना।
- सेवा और विनम्रता:
निःस्वार्थ सेवा: बिना प्रतिष्ठा या प्रशंसा की चाह के सेवा करना।
विनम्रता का अभ्यास: दूसरों को सम्मान देना और स्वयं को छोटा समझना।
- सत्संग और गुरु-कृपा:
सत्संग: आत्मज्ञानी संतों की संगति में रहना।
गुरु की कृपा: सद्गुरु के मार्गदर्शन में अहंकार का अंत करना।
गुरु-शरणागति: गुरु के चरणों में अहंकार समर्पित करना और उनके आदेश का पालन करना।
- शास्त्रों का अध्ययन:
अद्वैत वेदांत का ज्ञान: उपनिषद, भगवद्गीता, अष्टावक्र गीता, और शंकराचार्य की शिक्षाओं का अध्ययन।
आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान: आत्मा (अहंकार-शून्य चैतन्य) और ब्रह्म (सर्वव्यापी चेतना) के एकत्व का बोध।