आज फिर जब मैं

आज फिर जब मैं मन के

शीशे के सामने पहुचा

तो हैरान रह गया शीशा बोला

आ गए फिर से 

आ जाओ मेरा द्वार तुम्हारे

लिए न कभी बंद था न  बंद होगा

जानता हूं मैं तुम्हारे मन मे

न जाने अनगिनित विचार

आ आ कर तुम्हे सताते है

ओर तुम मुझसे दूर रहने की

कोशिश करते हो

पर मन के बदलते ही तुम 

मेरे पास आ कर अपने

विकार बता कर 

कहि ओर दुनिया मे जिसे

अध्यात्म कहा है उसमें चले

जाते हो और मैं अकेला ही

सोचता रहता हूं अभी अभी तो ये कहा ओर अब कुछ और

में जानता हूं कि तुम्हारा 

आत्म विस्वास ही तुम्हे मुझसे दूर कर उस दुनिया मे ले जाता है

ओर तू न जाने उस दुनिया मे खो मुझे भूल अनंत में खो जाते हो

मैं शीशा जो बेजान हु तुम्हे

देख कर सिर्फ मुस्करा देता हूं और सोचता हूं क्या की क्या अजीब है  ये

आता भी है मेरे पास ओर मुझसे दूर भी रहना चाहता है

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