- शुद्ध और शाश्वत स्वरूप:
आत्मा शुद्ध, शाश्वत, और अमर है। इसका स्वभाव सत्य (सत), चेतना (चित), और आनंद (आनंद) है।
यह माया से परे और सभी बंधनों से मुक्त है।
- परमात्मा का अंश:
भगवद गीता में कहा गया है, “ममैवांशो जीवलोके” – आत्मा परमात्मा का अंश है।
इसलिए आत्मा का स्वभाव सदैव ईश्वर में लिप्त और दिव्यता से युक्त होता है।
- साक्षी भाव:
आत्मा साक्षी (द्रष्टा) रूप में रहती है और मन, बुद्धि, और अहंकार के कार्यों को देखती है, लेकिन उनमें लिप्त नहीं होती।
यह सभी अनुभवों को देखती है, लेकिन उनसे प्रभावित नहीं होती।
- अखंड आनंद और शांति:
आत्मा का स्वभाव अखंड आनंद और शांति का स्रोत है, क्योंकि यह नित्य (शाश्वत) है।
इसका सुख भौतिक वस्तुओं पर निर्भर नहीं होता।
- ब्रह्म से एकत्व:
वेदांत में आत्मा और ब्रह्म को एक माना गया है – “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ब्रह्म हूँ)।
आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में सदैव परमात्मा (ईश्वर) में लीन रहती है।