- सत्य स्वरूप: आत्मा शाश्वत सत्य है, जो जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त है।
- अविनाशी और नित्य: आत्मा का कभी नाश नहीं होता। शरीर नष्ट हो सकता है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है।
- साक्षी भाव: आत्मा साक्षी रूप में रहती है। यह मन, बुद्धि, और अहंकार के कार्यों को देखती है, लेकिन उनमें लिप्त नहीं होती।
- आनंदमय: आत्मा का स्वभाव ‘सत-चित-आनंद’ (सत्य, चित्त, और आनंद) है।
- स्वतंत्र और पूर्ण: आत्मा किसी भी बंधन से मुक्त है और अपने आप में पूर्ण है।