आत्मा का बोध: स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर का महत्व

इन तीनों शरीरों को समझना आत्म-ज्ञान की ओर पहला कदम है।इन तीनों शरीरों को समझना आत्म-ज्ञान की ओर पहला कदम है।

  1. स्थूल शरीर (भौतिक शरीर) – यह पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना है। यह जन्म और मृत्यु के चक्र में आता-जाता रहता है।
  2. सूक्ष्म शरीर (मन, बुद्धि, अहंकार) – यह कर्मों और संस्कारों से प्रभावित होता है। हमारे विचार, इच्छाएँ और भावनाएँ यहीं से संचालित होती हैं।
  3. कारण शरीर (आत्मिक चेतना) – यह आत्मा का असली स्वरूप है। यह अज्ञान (अविद्या) के कारण परम सत्य से दूर रहता है, लेकिन जब इसे आत्म-ज्ञान प्राप्त होता है, तो मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

कैसे जाने कि हम आत्मा हैं, शरीर नहीं?

भगवद गीता (2.13) कहती है:
“देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥”

अर्थात, जैसे शरीर बचपन, जवानी और बुढ़ापे से गुजरता है, वैसे ही आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। लेकिन ज्ञानी पुरुष इससे विचलित नहीं होते।

जब तक इंसान खुद को केवल शरीर मानता है, वह सुख-दुख, मोह-माया, इच्छाओं और विकारों में फँसा रहता है। लेकिन जब उसे यह बोध हो जाता है कि वह शुद्ध आत्मा है, तब वह सांसारिक दुखों और विकारों से मुक्त होकर सच्चे आनंद की ओर बढ़ता है।

विकारमुक्त जीवन कैसे संभव है?

  1. ध्यान और आत्मनिरीक्षण – ध्यान से हम अपने भीतर के सूक्ष्म स्तर को समझ सकते हैं।
  2. सद्गुणों का विकास – करुणा, प्रेम, सहनशीलता और सत्यता को अपनाना।
  3. अहंकार का त्याग – खुद को शरीर या मन नहीं, बल्कि आत्मा मानना।
  4. निष्काम कर्म – बिना स्वार्थ के कर्म करना, जैसा गीता में कहा गया है (कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन)।
  5. सत्संग और ज्ञान प्राप्ति – अच्छे विचारों और गुरु की संगति से आत्मज्ञान की ओर बढ़ना।

मानवता और आत्मा का संबंध

जब कोई व्यक्ति आत्मा के स्तर पर जीने लगता है, तो वह स्वार्थ, द्वेष और क्रोध से मुक्त हो जाता है। वह दूसरों को भी आत्मा के रूप में देखता है, न कि केवल शरीर के रूप में। यही सच्ची मानवता है—जहाँ प्रेम, दया और सेवा का भाव प्रकट होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *