- नाद योग (ध्वनि ध्यान):
नाद योग में आंतरिक ध्वनियों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसे अनाहत नाद (बिना किसी बाहरी टकराव के उत्पन्न ध्वनि) सुनने की प्रक्रिया कहा जाता है।
अभ्यास कैसे करें:
शांत स्थान पर बैठें, रीढ़ सीधी और शरीर आरामदायक स्थिति में हो।
आँखें बंद करके गहरी साँस लें और छोड़ें, मन को शांत करें।
कानों में अंगुलियाँ हल्के से लगाएँ (शांभवी मुद्रा) और आंतरिक ध्वनियों पर ध्यान केंद्रित करें।
पहले आप हृदय की धड़कन, फिर धीमी ध्वनियाँ जैसे घंटी, ओम, या मधुर गुंजन सुन सकते हैं।
इसे प्रतिदिन 15-20 मिनट तक करें, धीरे-धीरे आंतरिक नाद गहन और स्पष्ट होता जाएगा।
- अजपा जप (सहज मंत्र जाप):
अजपा जप का अर्थ है “बिना बोले मंत्र जाप”। यह “सोऽहं” मंत्र का स्वाभाविक जाप है, जो श्वास के साथ स्वयं होता है।
अभ्यास कैसे करें:
आरामदायक ध्यान मुद्रा में बैठें, रीढ़ सीधी हो।
बिना किसी प्रयास के अपनी सांसों पर ध्यान दें:
सांस अंदर लेते समय “सो” का अनुभव करें।
सांस बाहर छोड़ते समय “हं” का अनुभव करें।
किसी भी विचार को आने दें और जाने दें, केवल “सोऽहं” की लय में खो जाएं।
नियमित अभ्यास से यह मंत्र स्वाभाविक रूप से चलता रहेगा और आत्मा की आवाज सुनी जा सकेगी।
- हृदय ध्यान (हृदय स्पंदन पर ध्यान):
यह ध्यान हृदय-चक्र (अनाहत चक्र) पर केंद्रित होता है, जो प्रेम, करुणा और आत्मा की जागरूकता का केंद्र है।
अभ्यास कैसे करें:
ध्यान मुद्रा में बैठें और दायें हाथ को बाएं हृदय स्थान पर रखें।
अपनी हृदय धड़कनों को महसूस करें और उन पर ध्यान केंद्रित करें।
हर धड़कन के साथ “ओम” का मानसिक उच्चारण करें।
धीरे-धीरे यह धड़कन ओम की ध्वनि में विलीन होने लगेगी, जो आत्मा की आंतरिक आवाज है।
- त्राटक (दृष्टि साधना):
त्राटक एक बिंदु पर दृष्टि स्थिर करके ध्यान करने की विधि है।
अभ्यास कैसे करें:
एक मोमबत्ती की लौ को अपनी आँखों के सामने 2-3 फीट की दूरी पर रखें।
बिना पलक झपकाए लौ को देखें, जब तक आँसू न आने लगें।
फिर आँखें बंद करें और उस लौ की छवि को भृकुटि (आँखों के बीच का स्थान) पर देखने का प्रयास करें।
लौ की छवि धीरे-धीरे ओम या सोऽहं के रूप में प्रकट हो सकती है, जो आत्मा की आवाज का प्रतीक है।
- मौन साधना (मौन व्रत और आत्मावलोकन):
सप्ताह में एक दिन या कुछ घंटे पूर्ण मौन में बिताएँ।
इस दौरान न बात करें, न ही किसी संचार उपकरण का उपयोग करें।
मौन में मन के विचार धीरे-धीरे शांत होते हैं, और आत्मा की सूक्ष्म आवाज को सुना जा सकता है।
- प्राणायाम (श्वास नियंत्रण):
अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम:
अनुलोम-विलोम से मानसिक शुद्धि और श्वास की लयबद्धता आती है।
भ्रामरी (भंवरे जैसी ध्वनि) से आंतरिक कंपन और नाद का अनुभव होता है।
इसे नियमित करने से आत्मा की ध्वनि स्पष्ट रूप से सुनाई देने लगती है।
- स्वाध्याय (आत्म-अवलोकन और ग्रंथ अध्ययन):
भगवद गीता, उपनिषद, पतंजलि योगसूत्र और अद्वैत वेदांत के ग्रंथों का अध्ययन करें।
स्वाध्याय से आत्म-ज्ञान और आत्मा की आवाज को समझने में सहायता मिलती है।
इन विधियों का नियमित अभ्यास:
इन ध्यान और साधना विधियों को नियमित रूप से करने से मन की शुद्धि, आत्म-अवलोकन और अंतर्मुखता बढ़ती है।
धीरे-धीरे आत्मा की आवाज, जो शुद्ध चेतना की ध्वनि है, स्पष्ट और सजीव रूप से अनुभव होती है।