जब शरीर में कोई चक्र नहीं, तो 7 चक्रों का विवरण क्यों?
सात चक्र (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा, सहस्रार) भौतिक शरीर में कोई स्थूल अंग नहीं हैं, बल्कि ये सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र हैं, जो तंत्र और योग शास्त्रों में वर्णित हैं। ये चक्र नाड़ियों (ऊर्जा चैनल) के साथ मिलकर प्राण (जीवन ऊर्जा) के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। इनका वर्णन इसलिए है क्योंकि ये ध्यान और साधना के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन करते हैं। यह एक प्रतीकात्मक और अनुभवात्मक प्रणाली है, जो मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तरों को जोड़ती है।कुण्डलिनी चक्र का जिक्र किस लिए?
कुण्डलिनी शक्ति को तंत्र और योग में मूलाधार चक्र में सुप्त अवस्था में माना जाता है। इसका जिक्र इसलिए है क्योंकि कुण्डलिनी जागरण से साधक की चेतना उच्च स्तरों तक पहुँचती है, जो समाधि और आत्म-साक्षात्कार का आधार बनती है। कुण्डलिनी का उदय चक्रों के माध्यम से होता है, जो आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है। यह साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मनुष्य को उसकी दिव्य प्रकृति से जोड़ता है।अनाहद, ओम, सोहम ये आत्मा के नाम कहाँ से उत्पन्न हुए?अनाहद: यह अनाहत चक्र (हृदय चक्र) से संबंधित है, जहाँ “अनाहद नाद” (बिना किसी बाहरी स्रोत के सुनाई देने वाला आंतरिक ध्वनि) का अनुभव होता है। यह ध्यान की गहरी अवस्था में आत्मा के साथ एकता का प्रतीक है।ओम: ओम वेदों, उपनिषदों (जैसे मांडूक्य उपनिषद) और योग शास्त्रों में ब्रह्म का प्रतीक है। यह विश्व की सृष्टि, स्थिति और लय की ध्वनि है, जो आत्मा और परमात्मा का संनाद है।सोहम: यह श्वास के साथ होने वाली स्वाभाविक ध्वनि है (“सो” श्वास लेते समय, “हम्” छोड़ते समय), जो जीवात्मा और परमात्मा की एकता को दर्शाता है। इसका उल्लेख हठयोग और तंत्र ग्रंथों में मिलता है।
ये सभी आत्मा के स्वरूप को समझने और अनुभव करने के लिए प्रतीकात्मक और ध्यानात्मक उपकरण हैं, जो उपनिषदों, योग सूत्रों और तांत्रिक ग्रंथों से उत्पन्न हुए हैं।समाधि अवस्था में शरीर सक्रिय होता है या आत्मा?
समाधि में शरीर सामान्य रूप से निष्क्रिय होता है, क्योंकि मन और इंद्रियाँ शांत हो जाती हैं। आत्मा स्वयं न तो सक्रिय होती है और न ही निष्क्रिय, क्योंकि वह चेतना का शुद्ध स्वरूप है, जो सदा अपरिवर्तित रहती है। समाधि में साधक की चेतना आत्मा के साथ एकरूप हो जाती है, और शरीर केवल एक माध्यम के रूप में रहता है। गहरी समाधि (निर्विकल्प समाधि) में साधक बाहरी दुनिया से पूरी तरह अनभिज्ञ हो जाता है, और केवल आत्म-चेतना रहती है।आत्मा और शरीर में भेद?
वेदांत और योग दर्शन के अनुसार:आत्मा: आत्मा शुद्ध चेतना, अविनाशी, अनादि, और अनंत है। यह शरीर, मन, और इंद्रियों से भिन्न है। यह साक्षी (द्रष्टा) है, जो सभी अनुभवों को देखती है, लेकिन स्वयं अपरिवर्तित रहती है (गीता 2.20-25)।शरीर: शरीर स्थूल, सूक्ष्म, और कारण शरीर का संयोजन है, जो नाशवान और परिवर्तनशील है। यह आत्मा का अस्थायी आवास है।भेद: शरीर और आत्मा का भेद इस प्रकार है कि शरीर एक उपकरण है, जिसके माध्यम से आत्मा इस भौतिक संसार में अनुभव प्राप्त करती है। आत्मा अमर है, जबकि शरीर जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधा है। समाधि में साधक इस भेद को अनुभव करता है और आत्मा की शुद्ध अवस्था में स्थिर हो जाता है।