जब साधक समाधि में पूरी तरह एकाग्र हो जाता है,
तो वह:
- आत्मा और परमात्मा की एकता को अनुभव करता है।
- संसार के बंधनों और मोह से मुक्त हो जाता है।
- शाश्वत आनंद (आनंदमय अवस्था) और शांति का अनुभव करता है।
यह शिखर तक पहुँचने की प्रक्रिया साधना, भक्ति, और आत्म-अनुशासन के माध्यम से संभव है।