आध्यात्मिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की ओर

हजरत अबुल हसन नूरी (रह०) फरमाते हैं कि सूफ़ी ला यमलक वला युमलक यानि सूफी वोह है जो न तो किसी के कब्ज़े में होता है और न किसी को अपने कब्ज़े में करता है, यानि जो न किसी की प्रापर्टी होता है, और न वोह किसी को अपनी प्रापर्टी बनाता है। और जो अपने आपको कुल्ली तौर पर खुहाशिशों से आज़ाद कर लेता है।

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