आ’शिक़-ए-यारम

आ’शिक़-ए-यारम मरा बा-कुफ़्र-ओ-बा-ईमाँ चे कार…….तिश्न-ए-दर्दम मरा बा-वस्ल-ओ-बा-हिज्राँ चे कार।

( मैं तो यार का आ’शिक़ हूँ मुझे कुफ़्र और ईमान से क्या काम,

मैं दर्द का प्यासा हूँ मुझे मिलन और बिछड़ने से क्या काम )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *