ईश्वर

आध्यात्मिक भाषा में, काम के लिए काम करने की प्रतिबद्धता, अर्थात्, सभी के ऊपर अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देना निष्काम कर्म के रूप में जाना जाता है, जबकि बिना किसी इच्छा के केवल भगवान के लिए भक्ति को निष्काम भक्ति के रूप में जाना जाता है

आध्यात्मिकता में  हम जानते है कि ईश्वर को पाने जानने और उसमें। लय होने के लिए हमे शास्त्रो में तीन बातें मुख्य रूप से वर्णित है ये तीन   है पहला  गुरु या ईश्वर में आपका । संबंध,  क्या है फिर उनमें विश्वास औरअंत मे जो मुख्य है वह हमारा समर्पण। अगर ये तीनो मुख्यता किसी भी इंसान में है तो वह परमात्मा को।पा सकता है ये तीनो मुख्यता मेरी नजर में संत में होती है और ये तीनो जिनमे मुझे नजर आती है वह है मीरा बाई ओर उनके बाद आध्यात्मिक भक्ति भाव मे इन तीनो गुणों के समाहित जिनमे है वह संत   मीरा  में  कृष्ण के प्रति एक रिश्ता या संबंध बन गया था दूसरा उनमे कृष्ण के प्रति अटूट विस्वास ओर उनके प्रति समर्पण यदि ये गुण किसी भी व्यक्तिआजाये या ये वो ग्रहण करले यानी ईश्वर या गुरु से समंध  ओर उनमे अटूट विस्वास ओर स्वम् को उनके लिए समर्पित करदे तो कोई उसे आध्यात्मिकता के शिखर पर पहुचने से रोक नही सकता हम गुरु से रिश्ता जोड़ लेते है और उसमें विस्वास भी रखते  है पर हम उनके प्रति समर्पित नही हो पाते यदि किसी मे भक्ति ओर प्रेम के साथ उसमे समर्पण का गुण भी आ जाये तो वह स्वम् एक उच्च कोटि का संत बन जाता है  इस अवस्था मे उसमे विकार खत्म हो उसमे प्रेम भक्ति ज्ञान और एकाग्रता के बीज उसके हृदय में पनप कर वह अपने ईस्ट  के प्रति समर्पित हो जाता है और इशवरिय गुण उसमे उतपन्न हो वो वीतरागी या केवली बन  मोक्ष का अधिकारी बन जाता है और सब कर्म से मुक्त हो जाता है और अपने गुरु में लय हो जाता है

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