“अगर जीवन है तो मृत्यु है, और मृत्यु है तो अंत है – फिर मन की शांति के लिए ईश्वर भजन क्यों?”
यह विचार दार्शनिक, आध्यात्मिक, और कभी-कभी मनोवैज्ञानिक तीनों दृष्टियों से देखा जा सकता है। आइए इन पहलुओं को एक-एक करके समझते हैं:
- दार्शनिक पहलू:
(क) अस्तित्व का प्रश्न (Existential Thought):
जीवन और मृत्यु का संबंध अनिवार्य है। लेकिन दर्शन पूछता है:
“क्या मृत्यु ही अंतिम सत्य है या कुछ और भी है?”
कुछ दर्शन जैसे बौद्ध और चार्वाक कहते हैं: मृत्यु के बाद कुछ नहीं। इसलिए अभी का जीवन ही सब कुछ है।
पर उपनिषद, वेदांत, और गीता जैसे ग्रंथ कहते हैं:
“आत्मा अजर-अमर है, शरीर बदलता है – मृत्यु अंत नहीं, एक परिवर्तन है।”
(ख) भजन और साधना का उद्देश्य:
भजन या साधना मृत्यु को टालने के लिए नहीं, बल्कि मृत्यु की सच्चाई को स्वीकार कर शांति से जीने के लिए होती है।
“मरणोपरांत क्या होगा?” इस चिंता से मुक्त होकर,
“अभी कैसे जीना है?” – इस पर ध्यान देने का माध्यम है ईश्वर भजन।
- आध्यात्मिक पहलू:
(क) ईश्वर भजन = आत्मा से जुड़ाव:
जब मन अनित्य (जो बदलता है) को पकड़ता है, तब वह अस्थिर होता है।
ईश्वर भजन का उद्देश्य है – मन को नित्य (स्थायी) से जोड़ना।
ईश्वर = प्रतीक है शाश्वत शांति, प्रेम और करुणा का।
भजन या साधना से मन में एकाग्रता, भक्ति, और वैराग्य आते हैं।
(ख) मृत्यु का भय कम होता है:
जब व्यक्ति आत्मा को ईश्वर से जोड़ता है, तो मृत्यु उसे डरावनी नहीं लगती –
बल्कि एक नया चरण लगने लगता है।
- मनोवैज्ञानिक पहलू:
(क) भजन मन को स्थिर करता है:
भजन, जप, ध्यान – ये सब मनोवैज्ञानिक रूप से थेरेपी की तरह कार्य करते हैं।
– तनाव, भय, अनिश्चितता को शांत करते हैं।
– व्यक्ति को सामाजिक, भावनात्मक और मानसिक सहारा देते हैं।
(ख) “अर्थ” की खोज:
मृत्यु के विचार से व्यक्ति जीवन में अर्थ खोजता है।
ईश्वर भजन उसे एक उद्देश्य, एक दिशा देता है –
जैसे: “मैं सिर्फ खाने-पहनने के लिए नहीं, कुछ उच्च हेतु के लिए हूँ।”
- भ्रांति कब बनता है?
जब भजन केवल डर या स्वार्थ से किया जाता है:
– जैसे “पाप धुल जाएँगे”, “स्वर्ग मिलेगा”, या “ईश्वर नाराज़ न हो जाए।”
तो यह श्रद्धा नहीं, अंधविश्वास बन जाता है।
सच्चा भजन भय से नहीं, प्रेम और शांति की तलाश से होता है।
निष्कर्ष (Essence):
“मृत्यु अंत हो या नहीं, मन की शांति का संबंध जीवन के हर क्षण से है।”
ईश्वर भजन उसी मन की गहराई से जुड़ने का एक सुंदर माध्यम है –
न कि मृत्यु से बचने की कोशिश, बल्कि जीवन को पूर्णता से जीने की साधना।