मैं चिंतन कर रहा था कि प्राचीन ऋषि मुनियों की दीर्घ व स्वस्थ आयु का रहस्य क्या था। मेरी नजर में मुख्यत: 3 बड़े कारण थे-
वे खानपान में कंद मूल या ज्यादातर प्राकृतिक रूप में फल सब्जियों का सेवन करते थे।
वे एकदम स्वच्छ वातावरण में रहते थे और प्राणायाम आदि का अभ्यास करके शरीर को भी अभ्यास से मजबूत रखते थे।
वे अधिक समय साधना में व्यतीत कर प्राण तत्व को सशक्त रखते थे।
आज के समय में तीनों की तत्वों में बहुत कमी आई है।
खानपान में जीव्हा स्वाद के कारण ज्यादातर पका हुआ मसालेदार भोजन खाते हैं। प्राकृतिक रूप में भोजन बहुत कम मात्रा में लेते हैं और जो कुछ भी लेते हैं उनमें इंसानी स्वार्थ का मिलावटी जहर भी हमारे अंदर जाता है। वातावरण में विषाक्त कणों की भरमार है और प्राणायाम जैसी क्रिया से अमूमन लोग परहेज ही करते हैं।साधनात्मक जीवन से प्राणशक्ति को मजबूत करने का समय भी दिनचर्या में सबसे अंतिम प्राथमिकता रह गई है या प्राथमिकता की दृष्टि से दिनचर्या से हटकर सप्ताहांत को ही रह गई है।
मृत्यु अटल है किंतु अंतिम समय तक परमात्मा के दिए सर्वोत्तम उपहार शरीर को मंदिर की तरह स्वस्थ रखना बहुत कुछ हमारे हाथ में भी है। परमात्मा के उपहार के प्रति हमारी जिम्मेदारी अवश्य है। विचार करें।
सादर नमन।