कांटों का ताज: आत्मबोध और गुरु पद की परीक्षा

आज फिर से आईने के सामने कुछ जागते कुछ सोते मन मे खयाल लिए खड़ा हुआ तो आईने ने घूर के देख ओर सर पर से कांटो भरे वो भी बबुल के पेड़ के ताजा तोड़े हुवे कांटे जो बिना किसी अस्तर के ताज बना हुआ था को मेरे सरपर पहनाते हुवे बोला लो इसे ।पहन लो और फिर देखो और सहो उसकी चुभन ओरगुरु बन अब तुम्हे पता लग जायेगा क्या होता है ताज उसने मुझे कांटो का ताज पहना दिया और एक आसान पर बैठा दिया और कहा लो देखो तभी मैं देखता हूं घर के बाहर लोगो की लाइन लगी हुई है और कांटो वाले बाबा के नाम से घर के बाहर लोगो की अनगिनित लाइन मिलने।की होड़ लगी हुई थी पहले नंबर जो आया बोला बाबा मुझे घर चाहिए
दूसरा बोला मुझे पैसा चाहिए तीसरा बोलै उच्च पद चौथा बोलै मैं नेता बनने की इच्छा है पांचवा बस नॉकरी मिल जाये चाहे चपरासी की हो छठा बोला जमीदार परेशान करते है सातवा बोला फसल नही हो रहा आठवा बोलै फांसी से बचालो मैंने कत्ल किया है नवा बोला मेरे को फला लड़की से शादी करवा दो दसवा बोल ने लगा मुझे तलाक दिलवा दोफिर आगे वाला बोला मुझे बेटा दिलवाडा
इस तरह से अनेक से मिलने लगा और सभी की कुछ न कुछ मांग सुन उन्हें पूरी करने की।मन्नत सुन मेरा दिल घबरा गया माथे पर पसीना ओर सर चकरा गया और सोचने लगा है गुरु देव इन भौतिक दुनिया के मालिकों को मैं कैसे उनकी मांग आपसे कह कर मुझ में कुछ नही अंश तुम्हारा फिर ये मांग पूरी कैसे करूँगा तुमने तो कांटो का ताज दे मुझे सिहासन पर बैठा दिया है जानता हूं इस पद पर जो अपने बैठा दिया है उसले लायक मुझमे एक भी। गुण नही नही इस पद केबलयक फिर भी रह कर बना लायक मुझे गुरु बना दिया मैं ओरनजोर जोर से आंसू बहा रो कर कहने लगा है दीनानाथ मैं कैसे सर परइन कांटो का बोझ ढोहूँगा ओर सहूंगा जानता हूं इनमे से कोई नही तुम्हे चाहने वाला और न ही तुम्हे मांगने आया समझ गया इस बईमान दुनिया के लालची लोगो से कैसे मैं बचूँगा यही सोच मैं त्राहि माम त्राहि माम मन ही मन ओर जोर से बोलने लगा और कहने लगा हटालो हटालो ये कांटो का ताज मेरे सर से हटालो तुम्हे ही मुबारक गुरु पद मुझे तो चेले से नीचे अपना चोकीदार बनालो कम से कम।पहरि बन लोगो।को मिलाने के बहाने तुम्हारे दर्शन कर लिया करूँगा रूखी सुखी दोनो समय खाकर परिवार के संग तुम्हारा जिक्र तो क र लूंगा ये अभी ख्याल चल रहा था कि अचानक शीशे में चेहरा नजर आया जो सावला पड़ चुका था और अपनी सोच पर शर्मीनदा था

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