कुर्मा मूर्धा नाड़ी” का उल्लेख कई प्राचीन योग और तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ जो इस नाड़ी से जुड़े हैं:
- हठयोग प्रदीपिका (Hatha Yoga Pradipika)
इस ग्रंथ में नाड़ियों, प्राणायाम और ध्यान के गूढ़ रहस्यों को समझाया गया है।
इसमें कुर्म नाड़ी का उल्लेख प्राण के स्थिरीकरण और ध्यान की गहराई में जाने के संदर्भ में किया गया है।
- गोरक्ष संहिता (Goraksha Samhita)
यह ग्रंथ नाथ संप्रदाय के योगियों द्वारा लिखा गया है।
इसमें “कूर्म नाड़ी” का उल्लेख है, जो ध्यान के दौरान स्थिरता और आंतरिक अनुभवों में सहायक मानी जाती है।
- योगतत्त्व उपनिषद (Yoga Tattva Upanishad)
इसमें 72,000 नाड़ियों का वर्णन मिलता है, जिसमें कूर्म नाड़ी को विशेष महत्व दिया गया है।
इसे मस्तिष्क और सहस्रार चक्र से जुड़ी एक महत्वपूर्ण नाड़ी बताया गया है।
- शिव संहिता (Shiva Samhita)
इसमें नाड़ियों और उनके प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
कुर्मा मूर्धा नाड़ी का उल्लेख विशेष रूप से मानसिक स्थिरता और समाधि के संदर्भ में मिलता है।
- तंत्र ग्रंथ (Tantric Texts)
कुछ तांत्रिक ग्रंथों में इसे ‘अमृत नाड़ी’ के रूप में भी संदर्भित किया गया है।
कुर्म मुद्रा और इस नाड़ी के जागरण से अमृत प्रवाह का अनुभव होने की बात कही गई है