केवल्य (मोक्ष) की अवस्था तब आती है जब आत्मा सभी विकारों, मोह, अहंकार, और इच्छाओं से मुक्त हो जाती है। जब तक शरीर की प्रत्येक रग में ईश्वरीय ऊर्जा का संचार नहीं होता, तब तक मनुष्य पूर्ण आत्मबोध या आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।
योग, ध्यान, सत्य, अहिंसा, और आत्मअनुशासन के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर ईश्वरीय चेतना को जाग्रत कर सकता है। जब सभी विकार समाप्त हो जाते हैं, तब आत्मा स्वयं के शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाती है, जिसे केवल्य की स्थिति कहते हैं। यही आत्मा की परम मुक्ति और आनंद की अवस्था होती है।योग, ध्यान, सत्य, अहिंसा, और आत्मअनुशासन के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर ईश्वरीय चेतना को जाग्रत कर सकता है। जब सभी विकार समाप्त हो जाते हैं, तब आत्मा स्वयं के शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाती है, जिसे केवल्य की स्थिति कहते हैं। यही आत्मा की परम मुक्ति और आनंद की अवस्था होती है।