केवल्य शब्द का अर्थ है ‘एकांत अवस्था’ या ‘अद्वितीयता’। योग और वेदांत दर्शन में केवल्य को अंतिम मोक्ष या मुक्ति की अवस्था माना गया है, जहाँ आत्मा (पुरुष) भौतिक संसार (प्रकृति) से पूरी तरह स्वतंत्र हो जाती है।
पतंजलि योगसूत्र में केवल्य:
पतंजलि योगसूत्र के अनुसार, केवल्य वह अवस्था है जब आत्मा (पुरुष) और प्रकृति (प्रकृति के गुण – सत्व, रजस, तमस) के बीच का संबंध समाप्त हो जाता है।
यह योग की अंतिम अवस्था है, जहाँ चित्त की सभी वृत्तियाँ (चिंतन, इच्छा, स्मृति आदि) शून्य हो जाती हैं और आत्मा अपनी शुद्ध और स्वतंत्र अवस्था में स्थित हो जाती है।
इसे “कैवल्य पद” कहा गया है, जो योग के चार पदों (समाधि, साधना, विभूति, और कैवल्य) में अंतिम है।