खानपान में शुद्धता

अकाट्य सच लिखा है पहले के समय मे खानपान में शुद्धता मिलती थी शहर व गांव  प्रदूषण रहित ओर सब वस्तु शुद्ध मिलती थी और सुबह सुबह ताजी हवा में घूमना व स्वस्थ रहने के लिए पैदल चलना योग व अन्य साधन उपलब्ध होए थे जिनमें हम घिरे रहते थे खान पान घी दूध पानी शुद्ध लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना और घर  को गोबर से लिप् कर शुद्ध करना पेड़ो की  छाव में बैठना केमिकल रहित मोटा कपड़ा पहनना दिखावे से दूर  व शुद्ध ऑक्सीजन  वायु कोंगरहं करना और आध्यात्मिक विचारो को पढ़ना व अमल।करना ये ही मुख्य  कारण थे आज ये सब साधन उपलब्ध शहर में नही है पर गांव में अभी भी पुराने रीति रिवाज ओर नियम लागू है इसलिये गांव में बीमारी कम और स्वस्था ज्यादा है दिखावा नही है ये सब मूल।कारण है आयु के लिए

हमारा शरीर प्राकृतिक वस्तुओ का उपयोग भूल  अप्राकृतिक मिनरल पर निर्भर हो गया है और दवाईओ के सहारे जीवन बसर कर रहा है आज के युग मे जो भी हमे प्राक्रतिक तरीक़े से मिलना चाहिए नही मिल रहा उसमे रसायन मिले हुवे है जो जहरिले  प्रकृति रखते है और यदि कम भी हों तो भी हमारी सेहत को नुकसान दे है है जिसके कारण मेरी नजर में जीवन शैलीन के कारण  लोग विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो ते जा रहे है  और प्राकृतिक जल  जो।पीने के लिए हमे मिल रहा है  वो भी शुद्ध नही है और प्राकृतिक वायु भी शुद्ध नही मिल रहीउसमे भी फेक्टरी से निकलने वाले जहरीले तत्व या कण  मिलने के कारण वो भी  प्रेदूषण युक्त है और घने पेड़ पौधे भी शहरों  मे उपलब्ध नही है इसलिए मनुष्य के पूर्ण रूप में स्वस्थ रहना दूबर है पर आध्यात्मिकता में भक्ति ज्ञान ध्यान और समाधि ओर प्राणायाम कुछ सहायता अवश्य कर रहा गया और कुछवाभि भी प्रकृतिभी कुछ न कुछ अभी भी सहायता कर रही हैये मेरी निजी सोच है

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