ग़ुरूर ब्रह्मा ग़ुरूर विष्णु ग़ुरूर देवों महेश्वरा  ग़ुरूर साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

ग़ुरूर ब्रह्मा ग़ुरूर विष्णु ग़ुरूर देवों महेश्वरा 

ग़ुरूर साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

गुरुदेव कहते हैं के यह श्लोक हमारे पूरणों में बहुत पहले से लिखा हुआ है इसका अर्थ है के गुरु ही उत्पत्ती करने वाले ब्रह्म है गुरु ही पालन पोषण करने वाले विष्णु है और गुरु ही विनाश करने वाले शिव है और गुरु यह ही नहीं ब्रह्म से भी ऊपर ( जो को ईश्वर है ) परम ब्रह्म इसलिए मैं गुरु को प्रणाम करता हूँ ।।

यह तो इस श्लोक का अर्थ हुआ पर इसको गहराई में समझना चाहिए के यहाँ गुरु की तुलना ब्रह्मा विष्णु और शिव से ही क्यों की गई है किसी और देवी देवता से क्यों नहीं । यह इसलिए क्योंकि हमारे वेदों के अनुसार ब्रह्मा विष्णु और महेश ही हैं जो पूर्ण सृष्टि तो चलते हैं और गुरु भी हमारी सृष्टि को चलाते  हैं । गुरु अपने सच्चे शिष्य के लिए यही सब है उसे किसी और देवी देवता की ज़रूरत नहीं अगर वह स्वयं ख़ुद को गुरु में समर्पण कर दे ।

आगे कहा जाता है के गुरु ही परम ब्रह्म है जो की ईश्वर तुल्य है तो गुरु ही स्वयं ईश्वर तुल्य है और जब गुरु ही ईश्वर तुल्य है तो उनके होते हुए कोई भी देवी देवता उनकी अनुमति के बिना आपका ना तो सहायक बन सकता है ना आपको कुछ प्रदान कर सकता है । 

इसको और भी सरल भाषा में समझे तो यदि आपको किसी एक ऑफिस के डिपार्टमेंट में काम है तो आप वहाँ बार बार चक्कर लगाते हैं और तब भी ज़रूरी नहीं के वह काम हो जाये जैसे हम बार बार देवी देवता से माँगने जाते हैं । यहाँ यदि उस ऑफिस के मुखिया के डिपार्टमेंट में आपके पिता काम करते हो और आप उनको अपना काम कह दें तो आपके पिता डिपार्टमेंट में फ़ोन करके कह दे के मेरा पुत्र या पुत्री है और आपको उसका काम करना है तो आपका  काम बिना चक्कर लगाये एक बार में हो जाता है । यही स्थिति गुरु और देवी देवता की है । गुरु तो स्वयं उस परमात्मा के डिपार्टमेंट में काम करते हैं तो हमारा काम वह चाहे जिस भी देवी देवता से करवाना चाहे करवा सकते हैं ।

यहाँ एक और बात है के गुरु करवा सकते हैं । करवा सकने में और करवाने में फ़र्क़ है । गुरु तो शिष्य के काम करवा देते हैं पर हम शिष्य काम होते ही गुरु को भूल जाता है जब तक दूसरा काम ना पड़े फिर ऐसे धीरे धीरे गुरु को यह समझ आ जाता है के शिष्य सिर्फ़ अपना काम करवाने ही आता है ।

अब हम शिष्य क्या चाहते हैं यह अपने ऊपर है या तो हम बार बार किसी देवी देवता की साधना उपासना करे पर यह ज़रूरी नहीं के वह देवता आपसे खुश हो आपका काम कर दे या फिर आप अपनी आत्मा के पिता गुरुदेव को अपना काम कह दे परंतु इसके लिए हमको समर्पण करना होगा तभी हमारा काम होगा ।

हम गुरु में समर्पण कर सके उनके चरणों में ख़ुद को मिटा सकें ऐसी ही प्रार्थना करते हैं ।।

 

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