गुरु की नजर में शिष्य योग्य है तो उसके लिए गुरु का दर्जा ईश्वर तुल्य है और गुरु की मेहर से वो तप कर सोना बन जाता है मेरा लिखने का भाव उनके लिए है जो गुरु को पहचानते नही ओर अपना स्वार्थ सिद्धि के लिये कुछ भी कर लेते है और नाम गुरु का बदनाम करते है मेरे हृदय में गुरु नाम के लिए वो इज्जत है और मैं हर गुरु में अपने गुरु के ही रूप देखता हु पर जो अन्यहै इस तरह के विचार नही रखते