मेरी सोच के अनुसार ये स्तिथि तभी संभव हो सकती। जब हम कीसी बात के बारे में ज्ञान न हो चुकी ईश्वर को हम मानते है और आत्मा के साथ अनुभव करते है और महसूस करते है कि कोई शक्ति है जो हमे अपने होने का बोध करवा रही है जिसका माध्यम कर्म और। गुरु का ज्ञान है मेरी। सोच के अनुसार ये स्तिथि तभी आ सकती है जब व्यक्ति अनाहद मे लय हो ओर वीतरागी बन चुका हो उसे किसी भी सोच से कोइ मतलब न हो ओर एकाग्र अवस्था में और जो खो ईश्वर में जाए वरना हमारे मस्तिष्क में कोई न कोई शुद्धया अशुद्ध विचार आता ही रहेगा चुकी हम सोचते है कि ईश्वर के रूप में गुरु हैं हमको ध्यान करवा रहे है और उनका ही हों रहा गया विचार शून्यता के लिए विचार रहित तभी हो सकते भाई जब हम नाद पर अपना ध्यान पर केन्द्रित कर सके बौधागम्य । अज्ञेय । कल्पनातीत ।
२. जिसका अंदाजा न हो सके । अकूत । अतुल ।
३. आशा से अधिक । ४ बिना सोचा बिचारा । आकस्मिक ।