हिंदू धर्म में गुरु का महत्व अत्यधिक बताया गया है, और यह माना जाता है कि गुरु के बिना आत्मज्ञान प्राप्त करना कठिन है। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु का मिलना पिछले जन्मों के संस्कारों और कर्मों पर निर्भर करता है।
गुरु प्राप्ति और जन्मों के संस्कार
पिछले जन्मों के पुण्य कर्म: यदि व्यक्ति ने अपने पिछले जन्मों में अच्छे कर्म किए हैं, तो उसे इस जन्म में शीघ्र ही एक योग्य गुरु की प्राप्ति होती है।
उचित समय पर गुरु मिलना: गुरु किसी भी अवस्था (बाल्यकाल, युवा अवस्था या वृद्धावस्था) में मिल सकते हैं। लेकिन जब भी मिलते हैं, तब से व्यक्ति का आध्यात्मिक उत्थान प्रारंभ हो जाता है।
संस्कारों का क्षय: गुरु के ज्ञान, उपदेश और कृपा से पिछले जन्मों के नकारात्मक संस्कार कट सकते हैं और व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकता है।
गुरु का महत्व शास्त्रों में
- गुरु बिना ज्ञान नहीं – “गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोक्ष।” (गुरु के बिना न तो सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है और न ही मोक्ष संभव है।)
- गुरु के चरणों में मुक्ति – “गुरु परसादि परम पद पाई।” (गुरु की कृपा से ही परम पद, अर्थात मोक्ष प्राप्त होता है।)
- अध्यात्मिक उन्नति का मार्ग – गुरु का मिलना आत्मा की यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है, जो जन्म-जन्मांतर के कर्मों को सुधारने और जीवन को सही दिशा देने में सहायक होता है।
निष्कर्ष
गुरु किसी भी अवस्था में मिल सकते हैं, लेकिन जब भी मिलते हैं, तभी से व्यक्ति का आत्मिक विकास प्रारंभ हो जाता है। जन्मों के संस्कार और कर्म महत्वपूर्ण हैं, लेकिन गुरु की कृपा से उन्हें परिवर्तित किया जा सकता है। इसलिए, गुरु की खोज और उनकी सेवा करना, आत्मा के कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है।