आध्यात्म में जब कोई गुरु शिष्य अपनी शरण में जाता है और वह पात्र होता है तो गुरु सबसे पहले उसके दर्शन में जान लेता है कि उसका कर्म कैसा है और उसे इस जन्म में किस हद तक अपने कर्म और गुरु की मेहर के बारे में पता चलता है गुरु उसे दीक्षित कर अपनी असान्त्रिक ऊर्जा देता है और यदि वह पात्र है तो उसे अनीआध्यात्मिक शिक्षा और कृपा उसे अपने स्तर पर ले आओ और उसके विकारों को दूर कर उसे सात्विक बनाओ, अपना आंतरिक ज्ञान भी उसे दीक्षित कर बताओ और किस तरह की मंजिलें बताओजब भी शिष्य भक्ति ज्ञान ध्यान और समाधि एकाग्रता में पूर्ण हो जाता है तो उसे सभी शरीर में सुख चक्रो यास्नी शरीर के रग रग में आवाज पैदा होती है और उसे अनाहद मी आवाज दे देता है ये ही ॐ है और ये ही सोहम् है और ये ही ईश्वर की आवाज है अध्यात्म में अनहद नाद और अजपाजप साधना के उन्नत चरण हैं।जब साधक इन अवस्थाओं का अनुभव करता है, तो उसे शून्यता का अनुभव गुरु करवाता है आध्यात्मिक शिक्षा में अनाहद व अजपा जाप के बाद जो उवहच स्तर होता है वह शून्य का होता है क्योंकि ब्रह्मसंद भी शून्य के शून्य में होता है और हम जानते हैं जो शून्यता हमें गुरु से मिली है वह भी। शून्यता एक प्रकार की आंतरिक शांति, शुद्ध और आत्म-अनुभव ही है जो साधक के मन या साधना में है, जहां कोई विचार, ध्वनि या इच्छा नहीं रहती हैअनाहद नाद: यह एक ध्वनि है जिसे बाहरी इंद्रियों से नहीं सुना जा सकता है, बल्कि यह आंतरिक ध्वनि है जो साधक के ध्यान के गहन स्तर पर होती है। यह ध्यान की एक ऐसी स्थिति है जहां साधक शिष्य के स्रोत से परे आंतरिक शांति का अनुभव होता है जब गुरु के गुरु के रूप में खेचरी मुद्रा को जान लिया जाता है जब उसके जबासन तालु के अंतिम चरण से जागें तो उसे एक अजीब स्वाद का वह स्थान पर अनुभव होता है होता है वह स्वास के रस के साथ अनाहद ध्वनि जो कि मंत्र रूप में ओम या सोहम् हैहमारे स