जब किसी शिष्य को आध्यात्मिक गुरु की तवज्जुह (ध्यान और कृपा) मिलती है, तो उसके आचरण में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। गुरु की शक्ति और आशीर्वाद से शिष्य के जीवन में गहरी मानसिक और आत्मिक परिवर्तन होते हैं।
- आध्यात्मिक अनुभव और शक्तिपात:
शक्तिपात, जब गुरु शिष्य के ऊपर अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को प्रवाहित करते हैं, तो शिष्य को एक गहरी और अद्वितीय अनुभव होता है। यह अनुभव शिष्य के मन, शरीर और आत्मा में एक नई ऊर्जा का संचार करता है। शिष्य को एक अदृश्य शक्ति का आभास होता है जो उसे आत्म-साक्षात्कार की दिशा में मार्गदर्शन करती है। यह अनुभव शिष्य को अपने भीतर एक नयी शांति और संतुलन का अनुभव कराता है।
- मोह-माया और द्वेष से मुक्ति:
गुरु की कृपा और शक्तिपात के कारण शिष्य का अहंकार और worldly attachments (मोह-माया) धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं। शिष्य का मन अब बाहरी चीजों में न फंसकर, गुरु की उपस्थिति और दिव्य मार्ग में रमता है। द्वेष, ईर्ष्या, और सांसारिक वासनाएँ शिष्य के जीवन से दूर हो जाती हैं, क्योंकि उसे आत्मा की वास्तविकता और परम सत्य का अहसास होता है।
- शिष्य का परिवर्तन:
आध्यात्मिक दृष्टिकोण में परिवर्तन: शिष्य को अब जीवन का उद्देश्य, सत्य, और प्रेम का अनुभव होता है। वह अपने जीवन को एक उच्च उद्देश्य के लिए जीने लगता है।
धैर्य और सहनशीलता: शिष्य में अब धैर्य और सहनशीलता का गुण विकसित होता है, क्योंकि वह अब अपने भीतर गुरु की शक्ति का अनुभव करता है और बाहरी घटनाओं को संतुलन के साथ देखता है।
सकारात्मकता और प्रेम: शिष्य के भीतर असीम प्रेम और सहानुभूति का जन्म होता है, जो उसे सभी जीवों के प्रति दया और सम्मान से भर देता है।
- गुरु में लय हो जाना:
जब शिष्य गुरु के शरण में पूरी तरह समर्पित होता है, तो वह अपनी व्यक्तिगत पहचान से परे होकर गुरु में पूरी तरह लय (एकाकार) हो जाता है। यह स्थिति उस शिष्य के लिए एक अनुभवजन्य स्थिति बन जाती है, जिसमें वह अपने भीतर आत्मा और परमात्मा के बीच की दूरी को मिटा पाता है। गुरु का दिव्य प्रकाश शिष्य के हृदय में घर करता है, और वह गुरु के आशीर्वाद से सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।
इस प्रकार, गुरु की कृपा और शक्तिपात शिष्य के जीवन में गहरी आंतरिक शांति, ज्ञान, और प्रेम का संचार करता है, जिससे वह आध्यात्मिक मार्ग पर प्रगति करता है और अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ पाता है।