गुरु कृपा और आत्मचिंतन: अध्यात्मिकता की ओर यात्रा

जब कभी भी मुझे मौका मिलता है तो अपने मन मे झाक लेता हूं जो दिया है गुरु ने उस उनके दिए वचन के अनुसार तौल कर आजमा लेता हूं और फिर सोचता हूं जो दिया है मुझे शक्तिपात से उस ऊर्जा का क्या मैं सही इस्तेमाल कर रहा हु अपने अंदर छुपे कलुशीत विकारो को कहि अपने से दूर कर कुछ कम कर पा रहा हु या अपने चरित्र को सही रूप से समझ पा रहा हु जो करता हु नित्य पूजा भक्ति ध्यान समाधि इससे आगे एकाग्रता में आगे बढ़ पा रहा हु या सिर्फगुरुओ के अपनाये शिष्यो की तुलना कर बीच अधर में झूल पा रहा हु तभी मन मे आया पगले तेरे गुरु ने तुझे अपने अंतर्मन से वो ज्ञान दिया है जो नही मिला किसी अन्य जाप वो अनाहद ओर अजपा जाप तुझे कर्मठयोग्य काबिल ओर समझदार नेक चरित्रवान समझ दिया है जानता है जो तुझे दिया वो किसी ओर के पास नही है ये अनाहद गुरु उसी को देता है जो उसकी नजरो में सही पात्र होता है तुझे तो एक नही चार गुरुओ ने ये शक्ति दी है जो सदा अविनाशी है बस ये ही एक ऐसी गुरु की दी हुई शक्ति है जो तुझे मुक्ति की राह पर ले चल गुरु चरणों तक पहुचा सकती है जानता है तू ओर मानता है तू तू आज भी उनकी नजर ओर शरण मे जो कर रहा है उसकी हर पल उनको खबर है फिर भी तेरे मन मे शंका है कुछ और पाने की तो सुन ये जगत ये ब्रह्मांड सब शून्य है और तुझे भी शून्य में मिल।जाना है इसलिए छोड़ सब को ओर खो जा उस निराकार अनंत में जिसने ये अनंत बनाया है जानता है तू इसी अनंत में संतो का जग आज तक समाता चला आया है है अगर तेरी तमन्ना की इस अनंत को।पाना है तो ले उसकी शरण कर समर्पण बन वीतरागी अब तुझे गुरु की शरण मे ही शरणागत हो जाना है जब रहेगा ही नही तेरा अस्तित्व इस भौतिक जीवसं में तो तू अपने आप अध्यात्मिकता के लोक में जा उसमे मिल उस ईश्वर के रचित ब्रह्मांड में एक दिन मिल जाएगा है और फिर रह अनंत काल तक मिल उस अनंत में अनंत तक वही रह उसकी शरण मे जीवन बितागा जब होगी प्रलय तब फिर जन्म ले अपने गुरु के संग आध्यात्मिक लोक में जन्म ले फिर से योगी बन जायेगा

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