आध्यात्मिक दुनिया मे गुरु और शिष्य दोनो का महत्व बहुत है अगर गुरु और शिष्य का आचरण समर्पण योग्यता और समर्पण प्रेम व शिक्षा का महस्तव अगर जीवन मे न हो तो गुरु की।मेहेर कभी नही मिल सकती और न ही शिष्य। कभी गुरु पद पर पहुच सकता गुरु शिष्य के लिए अपना जीवन कुर्बान कर उसे अपने गुरु का रूप देता है और वही शिष्य कीड़ी दूसरे को शिष्य बन अपने गुरु का रूप देता है यही महानता गुरु और शिष्य में होगी तब तो गुरु के द्वारा दिये नाम मन्त्र का फायदा है अन्यथा बेकार शिष्य में समर्पण और गुरु में शिष्य को काबिल।बनाने की क्षमता होना जरूरी है गुरु का दिया हुआ नाम और दीक्षा शिष्य के आध्यात्मिक जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वेदों और अन्य धर्मग्रंथों में गुरु की कृपा और नाम जप का महत्व बार-बार बताया गया है।
गुरु कृपा और नाम जप का महत्व:
- आध्यात्मिक मार्गदर्शन – गुरु शिष्य को सही दिशा में चलने का मार्ग दिखाते हैं और उसकी उन्नति में सहायता करते हैं।
- नाम जप की शक्ति – गुरु द्वारा दिया गया नाम या मंत्र शिष्य के चित्त को शुद्ध करता है और उसे ईश्वर से जोड़ता है।
- कर्मों का शुद्धिकरण – गुरु कृपा से और नाम जप के अभ्यास से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है।
- सद्गति का मार्ग – गुरु द्वारा दीक्षित व्यक्ति सही मार्ग पर चलता है और आत्मज्ञान प्राप्त करता है।
वेदों और उपनिषदों में भी यह कहा गया है कि “गुरु बिन ज्ञान न होय” यानी बिना गुरु के आध्यात्मिक उन्नति कठिन है। इसीलिए गुरु कृपा और नाम जप को आध्यात्मिक जीवन का आधार माना गया है।