मेरे पिता जी की एक महापुरुष व संत हुवे है उनका फरमाना था जब तक आपको गुरु की आंतरिक कृपा यानी तववजुह नही मिलेगी तब 5के आपके बुरे कर्म कट नही सकते और अच्छे कर्मों का पूर्ण रूप से फल नही मिल सकता गुरु की संगत आपको कहि से कहि पहुच सकती है और गुरु सम बना सकरी है गुरु ही वो दीपक हैं जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। बिना गुरु के न तो सही दिशा मिलती है, न ही आत्मिक उन्नति संभव है।
गुरु की कृपा दृष्टि ही वो माध्यम है जिससे जीवन में सार्थक परिवर्तन आता है।
कबीरदास जी ने भी कहा है:
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।”