गुरु के कर्तव्य: मार्गदर्शन, प्रेरणा और निःस्वार्थ सेवा

।सत्संग में चलने के लिए गुरु और शिष्य के कर्तव्य दोनों के बीच एक गहरा और पवित्र संबंध को समझने पर आधारित होते हैं। यह संबंध एक मार्गदर्शक और साधक के रूप में होता है, जो आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाता है।

गुरु के कर्तव्य

  1. मार्गदर्शन देना

गुरु का मुख्य कर्तव्य शिष्य को सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है। वे शिष्य को ज्ञान, आध्यात्मिक अनुभव, और शास्त्रों की व्याख्या प्रदान करते हैं।

  1. शिष्य के योग्य स्तर पर ज्ञान देना

गुरु को शिष्य की मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक क्षमता के अनुसार उसे शिक्षित करना चाहिए।

  1. प्रेरणा और विश्वास देना

गुरु शिष्य के भीतर आत्मविश्वास और श्रद्धा का विकास करते हैं ताकि वह सत्संग और साधना में निरंतरता बनाए रख सके।

  1. दोषों को सुधारना

गुरु का कर्तव्य है कि वह शिष्य के दोषों और कमजोरियों को दूर करने में उसकी सहायता करे।

  1. निःस्वार्थ सेवा

गुरु का प्रेम और सेवा निःस्वार्थ होती है। उनका उद्देश्य केवल शिष्य का कल्याण करना होता है।

  1. आदर्श जीवन जीना

गुरु को अपने आचरण और व्यवहार से एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए ताकि शिष्य उनसे प्रेरणा ले सके।

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