जब बच्चा छोटा होता है तब जब उसके घर के बड़े किसी के साथ वह कहीं मेले में या किसी नाटक देखने जाता है तब वह क़द छोटा होने के कारण अपने घर के बड़े के कंधों पे चढ़ के वह आनंद ले लेता है जो वह अपने बल बुते पे नहीं ले सकता ।
एक शिष्य भी ठीक इसी तरह अपने गुरु के ज्ञान के बल पे इस जीवन में वह आनंद प्राप्त कर सकता है जो वह अपने बल बुते पे नहीं ले सकता । इसके लिए चाहिए के शिष्य गुरु के प्रेम में सवार हो समर्पण कर दे फिर देखे कौनसी तकलीफ़ है कौनसी परेशानी है जो उसके आगे टिकती है ।
हम सब गुरुदेव में समर्पण कर सके और गुरु प्रेम कि गंगा में बह सके ऐसी ही प्रार्थना करते हैं ।।