गुरु के प्रति आस्था

अकाट्य सच लिखा गया है पिताजी भी यही कहते थे कि जब शिष्य को अपने गुरु के हवाले करते समय गुरु से ये ही दुवा करते है कि कच्चा घड़ा है ये इसे पकाना के लिए आपकी रहमत रूहानी चाहिए और गुरु अपने शिष्य की इस बात पर फिदा हो शिष्य के शिष्य को एक ही नजर ने पूर्ण कर उसका रुख  प्रेम और भक्ति की तरफ मोड़ समाधि की चरम अवस्था मे काबिल बना कर पहुच देते है और शिष्य के गुरु को पता नही चलता कि शिष्य कब गुड़ हो गया हर गुरु का मुख्य मकसद एक ही होता है खुद का कल्याण और उनके पास  आने वाले का कल्याण अगर अपनी शक्ति को शिष्य को बताने लगे तो गुरु में अभिमान आ जायेगा और गुरु और शिष्य कब डूब जाए ये उनके गुरु नही चाहेंगे इसलिए ये आध्यात्मिक विद्या रूहानी है जिसमे प्रेम श्रद्धा और भक्ति ही महत्व रखती गया और इन तीनो में चरम अवस्था गुरु की निजी मेहर से काबिल होने पर अपने आप मिल जाती है  बस। शिष्य में समर्पण  ओर ज्ञान और गुरु के प्रति आस्था होना जरूरी है

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