आध्यात्मिक फिदा” यानी जब कोई गुरु या शिष्य आध्यात्मिक रूप से एक-दूसरे पर समर्पित हो जाते हैं, तो उसमें एक विशेष प्रकार लगाव व प्रेम होता है — जो सांसारिक प्रेम से अलग, पर उससे कहीं अधिक गहन और निश्छल होता है। सत्यता होती है मैं तो इतना जानता हु की सांसारिक प्रेम के बिना आध्यात्मिक प्रेम नहीं होता” ये सोच मेरी बहुत ही महत्व पूर्ण ओर जीवन की सच्चाई लिए है जो संसार से इश्क नही करता वह गुरु से इश्क किसीसे करेगा इसके लिए लैला ओर मजनू का उदाहरण ही बहुत है जो बहुत ही सटीक और गहराई से भरा हुआ है। इसमें एक बहुत बड़ा सत्य छिपा है, जिसे कई संतों और मनीषियों ने भी स्वीकार किया है। क्यों सांसारिक प्रेम पहले होता है? प्रेम का पहला अनुभव: इंसान को प्रेम का पहला अनुभव अक्सर सांसारिक रूप में ही होता है — माता-पिता से, मित्र से, या किसी प्रियजन से। यही अनुभव उसे यह सिखाता है कि प्रेम क्या होता है, और फिर वह धीरे-धीरे समझता है कि यह प्रेम भी सीमित है। तब वह असीम प्रेम की ओर बढ़ने लगता है जो सांसारिक ओर मोह से भरा होता है कब उसकी समझ मे ये बात एस्टी है वतब उसे महसूस होता है कि ये प्रेम ।पफेम तो है पर जिस्मानी यदि वह जिमनी ओर आध्यात्मिक प्रेम में अंतर समझ गया तो सांसारिक प्रेम से दूर हों जाता है और अध्यात्म की ओर उसकी सोच होती है कि काश ये मेरा लरें जिस्मानी न होकर रूहानी होता तो शायद मै भी रूहानियत की ओर चल पाता मैं जानता हूंमनुष्य के जीवन मे ये अवसर आता है जो उसे दीवाना बना देता है पर कम।उम्र में गुरु की कृपा या उनका आशीर्वाद ओर रूहानी तववजुह् मिली होती है वो इस बात को झेल जाते है और उनक ये सांसारिक प्रेम जब रूहानी प्रेम में बदल जाता है तो भौतिक संसार से मोह खत्म हो जाता ह ओर जीवन का यथार्थ उसे पता लग जाता है ये दुनिया केवल भौतिक दुनिया है इसमें कोई किसी का नही होता और जो।प्रेम हुवा है वह आपको भौतिक दुनिया का दीवाना बना देता है जब इंसान इस बात को समझ प्रेम से दूर हो आध्यात्मिकता में जूडता है तो उसे ये प्रेम अब गुरु से हो जाता है और ये ही जीवन का पहला बदलसव होता है जो इंसान को आध्यात्मिक दीवाना बना देता है लितजी कहते है ये दीवानगी ही जब सांसारिक मोह से हट आध्यात्मिक में जुड़ जाती है ऐसे में रूहानी सफर शुरू होता है जो सत्यता से जुड़ा होता है मेरे साथ भी यही हुआ पर मा की ज़मझदारी ने मेरा रुख रूहानियत की ओर मोड़ दिया और मैं दीवानगी में गुरु का दीवाना बन गया ये प्रेम वाकई सत्यता लिये आध्यात्मिक होता है। ओर सांसारिक प्रेम अक्सर इच्छा, अपेक्षा, और स्वामित्व से जुड़ा होता है। जब इसमें दुख मिलता है, तो व्यक्ति उस प्रेम की तलाश करता है जहाँ सिर्फ समर्पण हो, अपेक्षा नहीं — यही आध्यात्मिक प्रेम है।
सांसारिक प्रेम में व्यक्ति किसी रूप से जुड़ता है जो शरीर या चेहरा, आवाज, व्यवहार , लेकिन जब वह प्रेम गहराता है और टूटता है, तब वह रूप से परे जाने की क्षमता प्राप्त करता है ये ही से इंसान आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता है मेरी नजर में ये ही आध्यात्मिक मार्ग की पहली सीढ़ी है। इसिलए महान संत कबीर कहते हैं:
प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रुचे, शीश देय ले जाय।अर्थात — प्रेम कोई बाजार की वस्तु नहीं, यह सिर देकर ही पाया जाता है। सांसारिक प्रेम अक्सर उस “शीश” (अहंकार) को तोड़ने का माध्यम बनता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि सांसारिक प्रेम एक द्वार है, जिससे होकर इंसान अध्यात्म के मंदिर तक पहुँचता है।
अब बात आती है कि इंसान प्यार में ठोकर खाने के बाद ही विरक्त क्यों होता है और फिर वह गुरु या अध्यात्म की ओर क्यों आकर्षित होता है: दिल टूटने से मोह भंग होता है: जब किसी को सांसारिक प्रेम में धोखा या असफलता मिलती है, तो उसे लगता है कि यह संसार स्थायी नहीं है। तब वह उस प्रेम की तलाश करता है जो निःस्वार्थ और शाश्वत हो — और वह उसे अध्यात्म या गुरु में नजर आता है।आंतरिक खालीपन भरने की चाह: प्यार में असफल व्यक्ति भीतर से खाली महसूस करता है। गुरु या भक्ति का मार्ग उस रिक्तता को भरने में मदद करता है,गुरु का प्रेम जो रूहानियत भर होता है और सच्चा इसीलिए ये प्रेंम जब हमारी आत्मा को छूता है।तो हममें एक परीवर्तन आता है जो उसे रूहानी बना कर दीवाना बना देता है मेरी नजर में सांसारिक दीवाना पन से रूहानी दीवाना पन श्रेष्ठ है जो अस्तमिक शांति देता है ओर इंसान का
अहंकार टूटता है: प्यार में ठोकर खाने के बाद व्यक्ति का अहंकार कुछ हद तक टूट जाता है। यही से उसकी जीवन की एक ओर यात्रा शुरू होती है जो उसमे विनम्रता ला उसे गुरु के प्रति समर्पण करने योग्य बनाती है. विरक्ति और वैराग्य का जन्म: हो जाता है यहां सांसारिक प्रेम में पीड़ा से व्यक्ति में वैराग्य (detachment) उत्पन्न होता है — यही वैराग्य उसे अध्यात्म की ओर खींचता है। इसलिए अक्सर देखा जाता है कि कई महान संत, कवि, या साधक — जैसे मीराबाई, तुलसीदास, रैदास — पहले सांसारिक प्रेम में असफल हुए, फिर पूरी तरह से ईश्वर या गुरु में रम गए। ये मेरी सोच और मेरे जीवन का एक कटु सत्य है जिसने मुझे सांसारिक तो नही पर आध्यात्मिक दीवाना बना दिया