गुरु गोविंद

गुरु गोविंद दोनो खड़े काके लागूं पांव ।

बलहारी  गुरु आपपे जो गोविंद दिए मिलाये ।।

यह श्लोक हमारे शास्त्रों में लिखा हुआ है । इस श्लोक का अर्थ है के गुरु और गोविंद दोनो अगर खड़े है तो किसके पांव पहले छूं यह एक शिष्य भक्त की विडंबना है । दूसरी पंक्ति में कहा है के गुरु तुम्हारी रहमत है जो तुमने मुझे गोविंद से मिलाया है और आप नही होते तो मैं गोविंद से मिल भी नही पाता । गोविंद से पहले आपने मुझ पर कृपा करी और इसलिए मैं पहले आपको प्रणाम करता हूं । 

यह इसका सरलार्थ है इसको थोड़ा और सरल करते है तो यहां 2 और शब्द है एक गोविंद और दूसरा मिलाए।

यहां पे गोविंद का अर्थ बहुत जगह अलग अलग हो जाता है और सभी अपने हिसाब से गोविंद देखते है । गोविंद स्वयं परमात्मा है और कोई गोविंद को देवी देवता भी मानते है । गुरु का मूल  तो सबको परमात्मा से मिलाना है साक्षात्कार करना है तो मेरा मानना है के यहां गोविंद परमात्मा है । 

दूसरा शब्द है मिलाए मैने कई जगह मिलाए का अर्थ परिचय कराना सुना परंतु असली अर्थ है परमात्मा में मिलन समर्पण इसलिए गुरु को पहले प्रणाम करता हूं ।

यहां मैं एक और बात लिखना चाहूंगा जो मेरी सोच है के हमने जाना है के गुरु है परमात्मा है वही तो अपने अंदर परमात्मा को बसाए हुए उस परमात्मा तुल्य है  तो इसे ऐसे भी देखा जा सकता है के पहले तो मैं आपको गुरु की तरह प्रणाम करता हूं फिर आपने मुझे अपने अंदर परमात्मा का बोध करवाया अब में उस परमात्मा को भी प्रणाम करता हूं ।

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