गुरु देव की छत्र छाया में रहकर भी जीव अधूरा हो नही सकता इसलिए जनाजा जब उठेगा तो उसके चेहरे वे वो मुस्कान होगी जो किसी अन्य चेहरे पर नही हो सकती यानी पूर्णता की जब पूर्णता मिल गई और गुरु चरणों मे सेवक चला गया तो अफसोस किस बात का मैं तो अपने एस्प को भाग्यशाली मानुगा की मैं गुरु के चरणों में मेरी कोई जगह है और मेरे गुरु सतलोक में तो मैं भी सतलोक में ही मिलूंगा जिसने लिखा है सही लिखा है-
उठे जनाजा तो खुशिया मना लेना
था कोई गुरु देव का चाहने वाला शिष्य
जो आज दुनिया से रुक्सत हो गया
है मुझे अफसोस कि वो अब हमारे
बीच नही रहा
वरना उसकी शक्ल देख हम
भी गुरु देव को याद कर जश्न
मनाते थे
कम से कम कुछ तो कर्म
हमारे भी कट के
हमारे संस्कार भी शुद्ध हो जाते थे
लिखने वाले को नमन ओर उसके गुरु दोनो को नमन
भाग्यशाली है वो जिसने ये स्तिथि पाई है