पिताजी साहब का गुरु और शिष्य के संबंधों के लेकर कहते थे जो शिष्य बिक गया यानी गुरु ने उसे कबूल।कर सब कुछ समर्पित कर दिया तो उसके सभी भोतिक ओर आध्यातिमकता पर गुरु का हक हो जाता है और शिष्य अपनी इच्छा से उस खर्च कर नही सकता क्योंकि जब उसने गुरु की अधीनता स्वीकार करली तो उसकी जिंदगी गुलाम की तरह हो जाती है और उसे गुरु के कहे आदेश की रु ब रु कार्य पूर्णकारने होते है आध्यात्मिकता में ही ये नियम है जो गुरु के बाजार में जिसे गुरु ने खरीद या वो उसका गुलाम हो गया पर गुरु के शरीर छोड़ने के बाद वही गुलाम बादशाह बन के गुलामो की खरीद करता है और नेक रास्ते पर चलता सिर्फ आध्यात्मिक ता में ही नियम है जी बिक गया वही गद्दी का मायालोक बनता है