गुरु और परमात्मा में अंतर
गुरु और परमात्मा दोनों ही आध्यात्मिक मार्गदर्शन और आत्मज्ञान से जुड़े हैं, लेकिन उनके स्वरूप और भूमिकाओं में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं।
- परमात्मा (ईश्वर, ब्रह्म)
परमात्मा निराकार, अनंत, सर्वशक्तिमान, और सर्वव्यापी है।
वह सृष्टि का मूल कारण है, जिससे सब कुछ उत्पन्न होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है।
परमात्मा को जाना नहीं जा सकता, बल्कि उसे अनुभव किया जाता है।
वह आत्मा का परम लक्ष्य है, जिसे योग, ध्यान और भक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
वेदों और उपनिषदों में उसे सच्चिदानंद (सत्-चित्-आनंद) कहा गया है।
- गुरु (आध्यात्मिक मार्गदर्शक)
गुरु वह होता है जो परमात्मा की खोज में साधक का मार्गदर्शन करता है।
गुरु स्वयं परमात्मा का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर चुका होता है और अपने शिष्यों को भी उसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
गुरु को “सद्गुरु” तब कहा जाता है जब वह शिष्य को केवल बाहरी ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मसाक्षात्कार की ओर भी ले जाए।
संत कबीर कहते हैं:
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।”
(गुरु और ईश्वर दोनों सामने खड़े हों तो पहले गुरु के चरण छूने चाहिए, क्योंकि उसी ने ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाया।)
मुख्य अंतर (Guru vs Parmatma)
निष्कर्ष
गुरु और परमात्मा अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि गुरु परमात्मा तक पहुँचने का माध्यम होता है। बिना गुरु के, शिष्य सही मार्ग पर नहीं चल सकता, इसलिए गुरु को परमात्मा से भी श्रेष्ठ माना गया है। लेकिन गुरु भी स्वयं परमात्मा से शक्ति प्राप्त करता है और उसी की ओर ले जाता है।