मैंने पढ़ा था लेकिन जाना नहीं था अपने चिंतन अपनी उलझनों को एक बार पूरे मन से व्यक्त कर दिया जाए लिख दिया जाए फिर अपने चिंतन के अनुसार उसे पढ़ा जाए तो स्वयं ही उस चिंतन की परिधि से बाहर एक नई रोशनी दिखाई देती है और मन उस बिंदु के चिंतन से आगे की परिधि में पहुंच जाता है।