“छांदोग्य उपनिषद” (Chandogya Upanishad) हिंदू धर्म के प्राचीन और प्रमुख उपनिषदों में से एक है, जो सामवेद के अंतर्गत आता है। यह 10 अध्यायों (प्रपाठक) में विभाजित है और इसमें वेदांत दर्शन के कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर चर्चा की गई है, जिसमें आत्मा (आत्मन्), ब्रह्म (परम सत्य) और विश्व के संबंधों को स्पष्ट किया गया है।
इस उपनिषद का सार इस प्रकार है:
- ब्रह्म की महत्ता: छांदोग्य उपनिषद ब्रह्म को सर्वोच्च सत्य और समस्त सृष्टि का आधार मानता है। यह संसार ब्रह्म का विस्तार है, और सब कुछ उसी से उत्पन्न हुआ है। यह “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” (सब कुछ ब्रह्म है) की अवधारणा को प्रस्तुत करता है।
- उपदेश और संवाद: इसमें गुरु-शिष्य के संवाद के माध्यम से शिक्षा दी जाती है, जैसे राजा अश्वपति और उनके याज्ञवल्क्य, श्वेतकेतु और उनके पिता उद्दालक के बीच। उद्दालक ने श्वेतकेतु को “तत्त्वमसि” (तू वह है) जैसे महावाक्य द्वारा यह सिखाया कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं।
- मेडिटेशन और उपासना: इसमें कई प्रकार के ध्यान और उपासना विधियों का वर्णन है, जिनके माध्यम से व्यक्ति सत्य को जान सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
- सत् (अस्तित्व) की शिक्षा: “सत्य” को सर्वोच्च रूप में समझाया गया है। सत्य का अनुसरण और उसकी अनुभूति ही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है।
- आत्मा का स्वभाव: आत्मा को अमर और अपरिवर्तनीय माना गया है। आत्मा और ब्रह्म की एकता ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है।
छांदोग्य उपनिषद का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति ब्रह्म को पहचानकर मोक्ष की ओर अग्रसर हो सके।