जब समर्पण बने साधना: गुरु-शिष्य का दिव्य मिलन

जब शिष्य की गुरु के प्रति दीवानगी इतनी प्रबल होती है कि गुरु भी उस पर मोहित हो जाता है, तो फिर शिष्य कैसे अधूरा रह सकता है?”

यह एक आध्यात्मिक या भावनात्मक स्तर पर गुरु-शिष्य के रिश्ते की सुंदरता को दर्शाती है—जहां समर्पण और श्रद्धा इतनी गहरी हो कि गुरु भी अपनी कृपा बरसाने को मजबूर हो जाए, और फिर शिष्य को पूर्णता प्राप्त हो जाए

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