जीवन के अंतिम पड़ाव में, जब व्यक्ति अपने भौतिक जीवन की संध्या में होता है, उसकी परमात्मा के प्रति इच्छाएँ और भी गहरी, परिपक्व और सजीव हो जाती हैं। इस समय, एक आध्यात्मिक व्यक्ति की ख्वाहिशें इस प्रकार हो सकती हैं:
- परमात्मा में पूर्ण विलय (मोक्ष)
जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर परमात्मा में लीन हो जाने की प्रबल इच्छा।
कोई भी बंधन शेष न रहे, केवल आत्मा का दिव्य प्रकाश में समर्पण हो।
- शांत और संतोषपूर्ण मृत्यु
जीवन का अंत शांति, प्रेम और ईश्वर की भक्ति में हो।
कोई पछतावा न रहे, केवल संतोष और कृतज्ञता हो।
- ईश्वर का साक्षात्कार
अंतिम क्षणों में परमात्मा की उपस्थिति और उनके दिव्य स्वरूप का अनुभव करने की आकांक्षा।
मृत्यु को एक अनंत यात्रा का द्वार मानते हुए, भय मुक्त होकर उसे अपनाने की इच्छा।
- पिछले कर्मों से मुक्ति
सभी पापों और बुरे कर्मों के लिए प्रायश्चित और क्षमा की प्रार्थना।
किसी भी अधूरे कार्य या बंधन को समाप्त कर, मन को हल्का और मुक्त करना।
- भक्ति और ध्यान में गहरी लीनता
अंत समय में भगवान का नाम लेते हुए इस संसार को छोड़ने की कामना।
निरंतर ध्यान, प्रार्थना और भजन-संकीर्तन में मन को रमाने की इच्छा।
- अपनों को आध्यात्मिक प्रेरणा देना
अपने परिवार और प्रियजनों को धर्म, सेवा, और सच्चे प्रेम का महत्व समझाने की इच्छा।
अपने अनुभवों और आध्यात्मिक ज्ञान को उनके साथ साझा करना।
- सेवा और दान का संकल्प
अपने पास जो भी धन, ज्ञान या संसाधन हैं, उन्हें जरूरतमंदों के कल्याण के लिए समर्पित करने की आकांक्षा।
इस संसार से जाते समय कुछ अच्छा छोड़कर जाने की ख्वाहिश।
- परम शांति और समर्पण
सबकुछ ईश्वर की इच्छा पर छोड़कर, हर परिस्थिति को सहजता से स्वीकार करना।
अपने शरीर, मन और आत्मा को पूरी तरह से परमात्मा के चरणों में समर्पित करना।
अंततः, एक सच्चे आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि परमात्मा से मिलने का सुनहरा अवसर होती है। जब इंसान अपने अंतिम पड़ाव पर आता है तो किये कर्मो के फल के बारे में सोचता है और बुरे कर्मो के लोए पश्चाताप करता है और अच्छे कर्मों के लोए भगवान को धन्येवाद देता है अंतिम यात्रा पर जब निकलता है तो सोचता है उसका अंतिम यात्रा गुरु चरणों मे पूरी हो हम।जसनते अंतिम यात्रा पहले समशान जाती है ओर जलने के बाद हड्डिया गंगा में बहा दी जाती है कुछ राख अग्नि के वेग के साथ मिल।के ब्रह्मांड मर चली जाती है और कुछ वही जलने वाले स्थान पर राह जाती है औरमुठी बबर राख गुरु की समाधि के पास मिटटी में बिखेत दी जाती है टामी उसपर गुजरने वाले कि चरण धूल।में लिप्त रहे और मोह घमण्ड से दूर हो गुरु चरन में हमेशा के लिए लुप्त हो।जाये