किसी भी धर्म मे मैं का प्रयोग कहि न कहि अहम को बताता है इसलिए व्यक्ति कॉम क्रोध लोभ मोह अहंकार इर्ष्या द्वेष राग ओर घमण्ड से मुक्त हो ये ही पंतजलि योग में लिखा है ओर इंसान योग के साथ साथ प्रेम भक्ति ज्ञान ध्यान और समाधि की अवस्था मे एकाग्र हो जाता है तो वह मोक्ष पाने का अधिकारी हो योग्य पुरुष अर्थार्थ एक उच्च कोटि का आध्यात्मिक ज्ञान का ज्ञातः बन के संत पद का अधिकारी बन जाता है