गीता के संदर्भ में धर्म और समाज का गहरा संबंध है। धर्म, गीता में, केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत और सामाजिक कर्तव्यों का पालन है, जो समाज की व्यवस्था और कल्याण को बनाए रखता है।गीता के अनुसार धर्म और समाज:कर्मयोग में श्रीकृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों (स्वधर्म) का पालन करना चाहिए, क्योंकि यह समाज के लिए उदाहरण प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए, राजा जनक ने गृहस्थ होते हुए भी कर्मयोग द्वारा समाज का नेतृत्व किया।गृहस्थ आश्रम का महत्व: जैसा कि पहले चर्चा की गई, गृहस्थ आश्रम समाज का आधार है। यह आश्रम आर्थिक उत्पादन, परिवार पालन, और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करता है। गीता में कर्म के प्रति निष्काम भाव समाज को बिना स्वार्थ के सेवा करने की प्रेरणा देता है। व चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का उल्लेख है, जो समाज के कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए गुण और कर्म के आधार पर विभाजित हैं। यह सामाजिक व्यवस्था धर्म के पालन से संतुलित रहता है गीता में “लोकसंग्रह” का उल्लेख है, जिसका अर्थ है समाज के हित के लिए कार्य करना। श्रीकृष्ण अर्जुन को प्रेरित करते हैं कि वह समाज के लिए आदर्श बनकर कर्म करे, ताकि दूसरों को भी धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले।निष्कर्ष:गीता के अनुसार, धर्म वह आधार है जो समाज को एकजुट और संतुलित रखता है। गृहस्थ आश्रम, कर्मयोग, और लोकसंग्रह के माध्यम से व्यक्ति समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि धर्म का पालन निष्काम भाव से हो, जो समाज के कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति दोनों को सुनिश्चित करता है।
भगवद्गीता में चार आश्रमों—ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, और संन्यास—का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, क्योंकि गीता मुख्य रूप से कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग पर केंद्रित है। हालांकि, गीता के दर्शन के आधार पर, गृहस्थ आश्रम को सबसे महत्वपूर्ण माना जा सकता है, क्योंकि यह सामाजिक व्यवस्था का आधार है और कर्मयोग का मुख्य क्षेत्र है।गीता में श्रीकृष्ण कर्म के महत्व पर जोर देते हैं और कहते हैं कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। गृहस्थ आश्रम में व्यक्ति परिवार, समाज, और धर्म के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाता है, जो गीता के कर्मयोग के सिद्धांत के अनुरूप है। यह आश्रम अन्य आश्रमों (ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ, संन्यास) के लिए भी आधार प्रदान करता है, क्योंकि यह आर्थिक, सामाजिक, और आध्यात्मिक स्थिरता देता है।इसलिए, गीता के संदर्भ में गृहस्थ आश्रम को सबसे महत्वपूर्ण माना जा सकता है, बशर्ते इसमें कर्म, धर्म, और भक्ति का समन्वय हो।