संत महात्माओं ओलिया या बोद्ध या पोप या इनके बराबर मानव में ईश्वरीय कृपा या किसी संत की मेहर से उनके अंदर नाद की ध्वनि पैदा हो जाती है और वो शरीर के रोम रोम में बजती हुई सुनाई देती है ऐसा धार्मिक संत लाखो में से एक होते है और जिसके पास ये ध्वनि रूपी ऊर्जा होती है वह लाखो लोगो में एक साथ उतपन्न करने की उसमे क्षमता रखते है ये ध्वनि संत पुरषो के रोम।रोम में बसी होती है जिसे हम।ओम शब्द को मानते गया ये ध्वनि अविनाशी होती है और म्रत्यु के बाद ये आकाश या ब्रह्मांड में समा जाती या विलीन हो जाती है इस ऊर्जा के शक्तिपात से संत अपने शिष्यों के हृदय क्षेत्रपर निगाह जिसे हम दीक्षा कहते है उसके द्वारा हृदय क्षेत्र के पास रोपित कर उस ऊर्जा को उर्धगति से ऊपर सहस्त्र चक्र की तरफ मोड़ देते है और फिर साधना से उसका प्रवाह पूरे शरीर मे करवा देते है