निर्बीज समाधि: जब आत्मा को पूर्ण मुक्ति का अनुभव होता है

निर्बीज समाधि योग की अंतिम और सर्वोच्च अवस्था है। ‘निर्बीज’ का अर्थ है ‘बिना बीज के’, यानी ऐसी अवस्था जहाँ पुनर्जन्म के कोई बीज या संस्कार शेष नहीं रहते। सबीज समाधि में कुछ संस्कार (कर्म के बीज) बने रहते हैं, जिसके कारण वापस आना संभव होता है, लेकिन निर्बीज समाधि में सभी संस्कारों का पूर्ण निरोध हो जाता है।
निर्बीज समाधि के बाद क्या होता है?
निर्बीज समाधि को प्राप्त करने के बाद, साधक को कैवल्य की प्राप्ति होती है। कैवल्य का अर्थ है परम मुक्ति या पूर्ण स्वतंत्रता। यह वह अवस्था है जब आत्मा (पुरुष) प्रकृति से पूरी तरह अलग हो जाती है और अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाती है।
इस अवस्था में निम्नलिखित बातें होती हैं:

  • संस्कारों का पूर्ण निरोध: चित्त के सभी संस्कार, चाहे वे शुभ हों या अशुभ, पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं। ये संस्कार ही पुनर्जन्म का कारण बनते हैं, और इनके नाश से जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।
  • सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर का लय: सूक्ष्म शरीर (मन, बुद्धि, अहंकार) और कारण शरीर (संस्कारों का भंडार) का पूर्ण रूप से लय हो जाता है।
  • अस्मिता का विलय: जीव का अस्तित्व अपने व्यक्तिगत रूप में नहीं रहता, कोई अस्मिता (मैं हूँ का भाव) शेष नहीं रहती।
  • प्रज्ञा का उदय: साधक को ऋतंभरा प्रज्ञा (सत्य से भरी हुई ज्ञान) की प्राप्ति होती है, जो उसे परम सत्य का अनुभव कराती है।
  • अमरत्व की शुरुआत: समाधि में समय रुक जाता है, काल ठहर जाता है और अमरत्व की शुरुआत होती है।
  • जीवन से मुक्ति: यह जीवन से मुक्ति की अंतिम उपलब्धि है। योगी इस अवस्था में पहुंचकर पूर्णतः मुक्त पुरुष हो जाता है।
    संक्षेप में, निर्बीज समाधि के बाद साधक पूर्णतः मुक्त हो जाता है। वह जन्म और मृत्यु के बंधन से परे हो जाता है और अपने शुद्ध, शाश्वत स्वरूप में स्थित हो जाता है। यही योग का अंतिम लक्ष्य है।

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