निस्वार्थ प्रेम और वैराग्य की यात्रा: जीवन की सच्ची राह

जिंदगी मिली है तो मरते दम तक एक ही दामन थाम के रहना जिसने दामन थाम लिया माता पिता रूपी गुरु का उसका क्या कहना निस्वार्थ प्रेम ही इंसान को निस्वार्थ बनाता है छूट जाते है अवगुन इंसा खुद वैराग्य धारण कर वैरागी बन जाता है

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